आप सोचिए, अगर कोई इंसान कभी विदेश गया ही नहीं, लेकिन उसकी ट्रैवल फोटोज़, वीडियोज़ और व्लॉग्स देखकर लगे कि वो पूरी दुनिया घूम चुका है? और जब आपको पता चले कि वो इंसान असल में इंसान है ही नहीं—बल्कि सिर्फ एक डिजिटल अवतार है, जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने बनाया है! है न चौंकाने वाली बात? यही है राधिका सुब्रमणियम, जो आज भारत की पहली AI ट्रैवलर इन्फ्लुएंसर बन चुकी हैं।
राधिका असली नहीं हैं, लेकिन वह इतनी असली लगती है कि लाखों लोग उसकी पोस्ट्स पर लाइक और कमेंट्स कर रहे हैं। इंस्टाग्राम पर उनकी तस्वीरें यूरोप की सड़कों से लेकर गोवा के बीच तक सबकुछ दिखाती हैं। लेकिन ये सब रियल नहीं, बल्कि AI जनरेटेड है। फिर भी, उनकी दुनिया को देखकर ऐसा लगता है कि वो बिल्कुल हमारी तरह खुश, जिज्ञासु और घूमने की दीवानी हैं।
अब सवाल ये उठता है, क्या AI भी इन्फ्लुएंसर बन सकता है? जवाब है, बिल्कुल! और राधिका इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। आज ब्रांड्स उन्हें अपनी मार्केटिंग में शामिल कर रहे हैं। उनकी हर तस्वीर और वीडियो स्क्रिप्टेड, डिजाइन की गई, और सॉफ्टवेयर से एनिमेटेड होती है—फिर भी उसमें वो सारी “फीलिंग” होती है जो एक असली ट्रैवल ब्लॉगर के कंटेंट में होती है।
जो लोग कहते हैं कि “AI इन्फ्लुएंसर रियल नहीं लगता ,” उन्होंने शायद राधिका को नहीं देखा। उनकी मुस्कुराहट, कैमरा के सामने की पॉज़िंग, और कैप्शन में लिखी लाइनों में ऐसी warmth होती है, जो सीधे दिल को छूती है। शायद इसीलिए लोग उनसे जुड़ पा रहे हैं।
अब आइए, इस ब्लॉग में जानें कि ये AI इन्फ्लुएंसर कैसे बनी, उनकी दुनिया कैसे बनाई गई, सोशल मीडिया पर वो क्या-क्या कर रही हैं और क्या AI ट्रैवलर्स वाकई इंसानों से आगे निकल सकते हैं
AI ट्रैवलर की शुरुआत: जिसे राधिका सुब्रमणियम ने किया शुरुआत
अगर आप कुछ साल पहले किसी से कहते कि एक वर्चुअल पर्सन आपके लिए ट्रैवल ब्लॉग्स लिखेगा, फोटोज़ शेयर करेगा, और खुद को ट्रैवल इनफ्लुएंसर कहेगा, तो शायद सब हँसते। लेकिन आज, AI ट्रैवलर्स एक सच्चाई हैं और तेजी से पॉपुलर हो रहे हैं। राधिका सुब्रमणियम इस ट्रेंड की सबसे बड़ी मिसाल हैं।
AI इन्फ्लुएंसर का मतलब होता है ऐसा डिजिटल कैरेक्टर जो रियल इंसान की तरह सोशल मीडिया पर एक्टिव होता है, फोटो पोस्ट करता है, रील्स बनाता है, ब्रांड्स को प्रमोट करता है। पर हकीकत ये है कि वो इंसान नहीं है। वो सिर्फ एक विजुअल कैरेक्टर होता है जिसे मशीन लर्निंग, जनरेटिव AI और फोटोरियलिस्टिक डिजाइन की मदद से तैयार किया जाता है।
एक AI ट्रैवलर को न तो वीज़ा की ज़रूरत होती है, न प्लेन टिकट की, न ही मौसम की फिक्र होती है। उसे जहां चाहिए, वहीं भेज दो, AI की मदद से। वो कभी स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर्स पर खड़ी दिखेगी, तो कभी जापान के चेरी ब्लॉसम के बीच में। सब कुछ सिर्फ कंप्यूटर पर। राधिका भी ठीक ऐसा ही करती हैं।
इससे एक क्रांतिकारी बदलाव आया है ट्रैवल इंडस्ट्री में। ब्रांड्स अब सोच रहे हैं कि जब वो हजारों डॉलर खर्च करके किसी इंसान को ट्रिप पर भेजते हैं, तब क्यों न किसी AI इन्फ्लुएंसर से बेहतर, तेज़ और सस्ता कंटेंट बनवाएं?
राधिका के केस में, उनके पीछे एक पूरी टीम है, AI डिजाइनर्स, कंटेंट क्रिएटर्स, स्क्रिप्ट राइटर्स और सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स, जो मिलकर उन्हें असली ज़िंदगी जैसी “डिजिटल ज़िंदगी” दे रहे हैं। और हज़ारों लोग इस ज़िंदगी से जुड़ भी रहे हैं।
तो अब सवाल उठता है, क्या AI हमारे भरोसे को बदल सकता है? क्या हम एक वर्चुअल कैरेक्टर की बातों पर यकीन कर सकते हैं? जवाब धीरे-धीरे हां में बदलता जा रहा है।
राधिका का डिजिटली कैसे बनाया गया
राधिका की डिजिटल बॉडी और फेस 3D मॉडेलिंग और Neural Rendering जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी से तैयार किए गए हैं। उनके चेहरे में ऐसी डिटेलिंग है कि अगर आप गौर से देखें तो भी शायद ही फर्क कर पाएं कि ये असली नहीं है। उनकी आँखों में चमक, हेयरस्टाइल, स्किन की टेक्सचर, कपड़ों की सिलवटें, हर चीज़ को इतनी बारीकी से डिज़ाइन किया गया है कि वो किसी फिल्म के वीएफएक्स कैरेक्टर से भी ज़्यादा रियल लगती हैं।
उनका व्यक्तित्व भी सोच-समझकर बनाया गया है। उन्हें एक independent, confident, and wanderlust-driven लड़की के रूप में पेश किया गया है। हर पोस्ट में वो लोगों को एक्सप्लोर करने, अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलने और नई चीज़ें देखने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके कैप्शन, उनकी लिखावट, उनका अंदाज़, सब में warmth और positivity होती है।
यह सब एक ऑटोमेटेड स्क्रिप्ट और क्रिएटिव टीम की मदद से होता है, जो हर पोस्ट को इंसानी स्पर्श देती है। चाहे वो किसी होटल में ब्रेकफास्ट कर रही हों, या पहाड़ों में सोलो ट्रेक कर रही हों—हर तस्वीर में एक कहानी होती है, जो दर्शकों को जोड़ती है।
असल में, ये सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं, एक तरह की डिजिटल जादूगरी है।
राधिका सुब्रमणियम ने सोशल मीडिया पर अपनी पहचान कैसे बनाया
राधिका सुब्रमणियम की सफलता की असली कहानी शुरू होती है सोशल मीडिया से। उनका इंस्टाग्राम प्रोफाइल किसी भी असली ट्रैवल ब्लॉगर से कम नहीं दिखता। खूबसूरत लोकेशन्स, शानदार एंगल्स, आकर्षक कैप्शन और एक सजीव ऊर्जा, ये सब उनकी पहचान बन चुका है।
हर हफ्ते वो 2-3 नई पोस्ट्स डालती हैं, जिनमें से कई ब्रांडेड होती हैं। अब तक उन्होंने कई ट्रैवल एजेन्सीज़, लग्ज़री होटल्स, और कैमरा गियर कंपनियों के साथ काम किया है। चौंकाने वाली बात ये है कि इन ब्रांड्स को इससे अच्छा एंगेजमेंट भी मिला है, जितना कई रियल इन्फ्लुएंसर्स से नहीं मिलता।
उनकी रील्स में भी वही वैरायटी है, ड्रोन व्यूज, क्लोज़-अप, POV शॉट्स, हर शॉट प्लान किया गया है ताकि वो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। यही कारण है कि उनकी फॉलोविंग तेज़ी से बढ़ रही है।
और हाँ, उनके कमेंट सेक्शन में लोग सच में उनसे जुड़ रहे हैं। कोई पूछ रहा है, “Where is this place?” तो कोई कह रहा है, “You inspire me to travel solo.” बहुत कम लोगों को पता है कि राधिका इंसान नहीं हैं, और जब पता चलता है, तब भी बहुत से लोग कहते हैं, “So what? Her content is still awesome.”
यही तो AI इन्फ्लुएंसर का मैजिक है।
वर्चुअल ट्रैवल कंटेंट कैसे बनता जैसे राधिका सुब्रमणियम बनाती है
अब आते हैं उस सवाल पर जिसे सबसे ज़्यादा पूछा जाता है, जब राधिका कहीं जाती ही नहीं, तो उनकी फोटो कहां से आती है?
इसका जवाब है, AI इमेज जेनरेशन और डिजिटल आर्ट। हर तस्वीर, हर वीडियो एक कंप्यूटर के जरिए बनाई जाती है। वो दिखती हैं जैसे वो किसी मशहूर लोकेशन पर खड़ी हैं, लेकिन असल में वो लोकेशन भी नकली होती है। उसे 3D टेक्स्चर, लाइटिंग, और शैडोज़ के जरिए असली जैसा बनाया जाता है।
एक टीम होती है जो ये तय करती है कि कौन सा लोकेशन इस्तेमाल करना है, कैसे कैमरा पोज़ होगा, किस टाइम का लाइटिंग होगा, और कैप्शन क्या होना चाहिए। इसके बाद AI इनपुट लेकर पूरी फोटो/वीडियो बनाता है।
अब आप सोच रहे होंगे, ये सब देखने में तो अच्छा है, लेकिन क्या इससे फॉलोअर्स को धोखा नहीं लगता? मज़ेदार बात ये है कि नहीं! क्योंकि जब तक कंटेंट अच्छा लग रहा है, और इंसान उससे जुड़ पा रहा है, तब तक फर्क नहीं पड़ता कि वो असली है या नहीं। इंसान कहानियों से जुड़ता है, चेहरों से नहीं।

राधिका सुब्रमणियम AI ट्रैवलर्स और रियल ट्रैवल ब्लॉगर में क्या फर्क है?
रियल और वर्चुअल के बीच की रेखा दिन-ब-दिन धुंधली होती जा रही है। लेकिन जब बात ट्रैवल इन्फ्लुएंसर्स की आती है, तब तुलना होना लाज़मी है। तो आइए देखें, राधिका जैसे AI ट्रैवलर्स और रियल ह्यूमन ब्लॉगर में क्या खास अंतर है।
सबसे पहला फर्क है अनुभव का। असली ट्रैवल ब्लॉगर असल जगहों पर जाकर वहां की हवा महसूस करते हैं, खाना चखते हैं, लोकल लोगों से मिलते हैं। उनकी कहानियाँ अनुभव की स्याही से लिखी जाती हैं। वहीं, राधिका जैसे AI इन्फ्लुएंसर्स का हर अनुभव कोड से निकला होता है। वो किसी लोकेशन पर नहीं जातीं, पर फिर भी उसके जैसा माहौल बनाकर आपको वहां का अनुभव दे देती हैं।
दूसरा बड़ा अंतर है तेजी और स्केलेबिलिटी। इंसान को एक ट्रिप की तैयारी, यात्रा और रिकवरी में हफ्तों लग जाते हैं, जबकि AI कैरेक्टर एक ही दिन में तीन देशों की ट्रैवल पोस्ट कर सकता है—वो भी बिना थके! राधिका की टीम उसे वर्चुअली कहीं भी भेज सकती है, कुछ घंटों में।
तीसरा फर्क है इमोशनल कनेक्शन। अब तक माना जाता था कि इंसान ही इंसान से जुड़ सकते हैं। लेकिन राधिका के फॉलोअर्स इस सोच को चैलेंज कर रहे हैं। वे उनकी वर्चुअल ट्रिप्स से प्रेरित हो रहे हैं, उनसे सवाल कर रहे हैं, उन्हें अपना ट्रैवल बडी मानते हैं।
इस तुलना में किसी को बेहतर कहना मुश्किल है। AI का स्केल और स्पीड जबरदस्त है, लेकिन रियल ब्लॉगर की गहराई और आत्मा आज भी अनमोल है। हाँ, यह ज़रूर कहा जा सकता है कि आने वाला समय इन दोनों को साथ लाने वाला है, जहां इंसान और AI मिलकर नया कंटेंट क्रिएट करेंगे।
AI ट्रैवल इन्फ्लुएंसर्स के बारे बे लोग क्या कहते है
जब से राधिका ने इंटरनेट पर कदम रखा है, तब से लोगों की राय बंटी हुई है। कुछ लोग उन्हें तकनीक का कमाल मानते हैं, तो कुछ इसे एक धोखा। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि लोगों की जिज्ञासा कम नहीं हुई है, बल्कि और बढ़ी है।
बहुत सारे यूजर्स का कहना है कि “मुझे फर्क नहीं पड़ता कि वो AI है, उनका कॉन्टेंट देखकर अच्छा लगता है, बस।” वहीं कुछ आलोचक कहते हैं कि “ये असली ट्रैवलर्स का काम छीन सकते हैं।” दोनों बातों में सच्चाई है।
कुछ लोग उन्हें ट्रैवल इंफोटेनमेंट का नया फॉर्म मानते हैं। जैसे हम फिल्में देखकर जगहों के बारे में सीखते हैं, वैसे ही AI ट्रैवलर हमें दुनिया के नए पहलुओं से रूबरू करवा सकते हैं, वो भी बिना एयर टिकट बुक किए।
युवा जनरेशन, खासकर Gen Z, इस बदलाव को खुले दिल से अपना रही है। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि कोई इंसान है या AI, जब तक कि वो एंटरटेन और इंस्पायर कर रहा हो।
लेकिन कुछ लोगों को डर भी है, “क्या अब असली लोग पीछे रह जाएंगे?” सवाल वाजिब है। लेकिन इसका हल विरोध में नहीं, तालमेल में है।
AI ट्रैवल कंटेंट: क्या ये फेक है या फ्यूचर?
जब लोग पहली बार राधिका की पोस्ट्स देखते हैं, तो अक्सर एक ही सवाल पूछते हैं, “क्या ये फेक है?” और ये सवाल स्वाभाविक है। लेकिन फिर ये भी पूछिए, “क्या फिल्में फेक होती हैं?” या “क्या एनिमेशन में दिखाए गए इमोशन्स असली नहीं लगते?”
AI ट्रैवल कंटेंट पूरी तरह से “फेक” नहीं होता। वो एक नया रचनात्मक फॉर्म है, जो टेक्नोलॉजी से बना है लेकिन भावनाओं से जुड़ता है। जैसे एक पेंटर कल्पना से पेंटिंग बनाता है, वैसे ही AI एक कहानी को ग्राफिक्स के ज़रिए दिखाता है।
राधिका की दुनिया वर्चुअल है, पर उनकी कहानी में इंसानी टच है। वो जगहें रियल हो या न हो, लेकिन उनका मैसेज, “दुनिया को एक्सप्लोर करो” एकदम असली है।
भविष्य में ये कंटेंट और बेहतर होगा। AI इन्फ्लुएंसर 3D, AR, VR के ज़रिए आपके साथ रियल टाइम में बातचीत कर सकेंगे। और तब शायद हम “फेक” या “रियल” के सवालों से आगे निकल जाएंगे।

राधिका सुब्रमणियम की सफलता की कहानी
अब बात करें आंकड़ों की, तो राधिका की ग्रोथ रफ्तार देखकर बड़े-बड़े ब्रांड्स हैरान हैं। इंस्टाग्राम पर उन्होंने कुछ ही महीनों में हजारों फॉलोअर्स बना लिए हैं। उनका एंगेजमेंट रेट 4–5% के बीच है, जो कि आज के समय में बहुत बेहतरीन माना जाता है।
ब्रांड्स भी अब उनके साथ कोलैब करना पसंद कर रहे हैं। उनकी सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली पोस्ट में 200K से ज़्यादा व्यूज़ और 50K लाइक्स आए हैं। कुछ वीडियो रील्स तो वायरल हो चुकी हैं।
ये सब इस बात का संकेत है कि दर्शक अब कंटेंट की क्वालिटी पर ध्यान दे रहे हैं, ना कि सिर्फ कंटेंट बनाने वाले के “इंसान” होने पर।
AI ट्रैवल इन्फ्लुएंसर का फ्यूचर क्या होने वाला है
अगर आप सोच रहे हैं कि राधिका अकेली हैं, तो बता दें—यह सिर्फ शुरुआत है। जल्द ही और भी AI इन्फ्लुएंसर्स आ रहे हैं। कुछ लाइफस्टाइल पर फोकस करेंगे, कुछ फूड पर, कुछ एडवेंचर पर।
AI का फ्यूचर इंटरएक्टिव होगा। आप अपने पसंदीदा AI इन्फ्लुएंसर से चैट कर सकेंगे, उन्हें सलाह दे सकेंगे, और यहां तक कि अपनी पसंद के हिसाब से उनकी जर्नी तय कर सकेंगे।
AI ट्रैवल इन्फ्लुएंसिंग एक सस्टेनेबल, स्केलेबल और सुपर क्रिएटिव इंडस्ट्री बनने जा रही है। और राधिका इसका चेहरा बन चुकी हैं।
निष्कर्ष
राधिका सुब्रमणियम सिर्फ एक डिजिटल कैरेक्टर नहीं हैं, वो एक नई सोच की प्रतीक हैं। वो दिखाती हैं कि कैसे टेक्नोलॉजी और क्रिएटिविटी मिलकर एक नई दुनिया बना सकती है। उन्होंने “इन्फ्लुएंसर” शब्द को एक नई परिभाषा दी है।
शायद वो हमारे जैसे सांस नहीं लेतीं, लेकिन उनकी हर पोस्ट एक नई साँस लेकर आती है, जो हमें देखने, सोचने और समझने को मजबूर करती है।
भविष्य AI का है, लेकिन उसमें इंसानियत भी होगी, बस उसी का खूबसूरत उदाहरण है राधिका।
FAQs
Q1: क्या राधिका सुब्रमणियम असली इंसान हैं?
नहीं, वो एक AI-जनरेटेड वर्चुअल ट्रैवल इन्फ्लुएंसर हैं।
Q2: क्या राधिका की तस्वीरें और वीडियोज़ नकली होती हैं?
वो रियल लोकेशन पर नहीं जातीं, लेकिन AI से बनाए गए कंटेंट बेहद रियल लगते हैं।
Q3: क्या ब्रांड्स AI इन्फ्लुएंसर पर भरोसा करते हैं?
हाँ, कई ब्रांड्स ने राधिका के साथ कोलैब किया है और उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला है।
Q4: क्या AI ट्रैवल इन्फ्लुएंसर रियल इन्फ्लुएंसर को रिप्लेस कर देंगे?
नहीं, बल्कि ये दोनों साथ मिलकर इंडस्ट्री को और रचनात्मक बना सकते हैं।
Q5: क्या मैं भी अपना AI इन्फ्लुएंसर बना सकता हूँ?
हाँ, अब ऐसी टेक्नोलॉजी उपलब्ध है जिससे आप अपना वर्चुअल इन्फ्लुएंसर बना सकते हैं।
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